धर्म

हज़रत अली की याद में हुआ जश्ने मौलूदे काबा

दरगाहे फातमान में कलाम सुनने जुटा हुजुम

सरफराज अहमद

वाराणसी। दरगाह फातमान Varanasi में जश्न-ए-मौलूदे काबा धूमधाम से मनाया गया। इस जश्न में कई ख्यातिलब्ध नेशनल व इंटरनेशनल शायरों ने शिरकत की। सभी ने पैगंबर हज़रत मोहम्मद (स.) के दामाद और शिया मुसलामानों के पहले इमाम हजरत अली के जन्मदिन का जश्न मनाया। मौलाना अकील हुसैनी, मौलाना वसीम रिजवी की मौजूदगी में देर रात तक हजरत अली की शान में कलाम पेश किए गए।

इस जश्न ए मौलूदे काबा में चार इंटरनेशनल शायरों शबरोज कानपुरी, शबीह गोपालपुरी, फाजिल जरैलवी और हेलाल ने शिरकत की। इसके अलावा बनारस से रोशन बनारसी, अतश बनारसी, इकबाल बनारसी, काविश बनारसी, साबिर बनारसी, शायद सिवानी, ऋषि बनारसी, अंबर तुराबी, चांद बनारसी, एलिया गाजीपूरी, जैन बनारसी और शाहिद ने अपने कलाम पेश किए। शबरोज कानपुरी को सुनने के लिए देर रात तक डटे रहे लोग* बेहतरीन लबो-लहजे के मालिक और हिन्दुस्तान के मशहूर शायर शबरोज कानपुरी को सुनने के लिए दरगाह फातमान का मजलिसी हाल खचाखच भरा रहा। रात 12 बजे के बाद उन्हें अंतिम शायर के रूप में माइक मिला तो पूरा हाल नारे हैदरी के नारों से गूंज उठा। उन्होंने जैसे-जैसे कलाम सुनाए। वैसे-वैसे सर्द रातों में गर्मी बढ़ती गई।

इस दौरान मौलाना अकील हुसैनी ने बताया- आज यहां जश्न मनाया जा रहा है। यह जश्न उस अली के लिए है जो पैगंबर मोहम्मद साहब के चचाजात भाई भी थे और उनके दामाद भी थे। अली ने पैगंबर साहब का हर मोर्चे पर साथ दिया। आज भी के बच्चों को चाहिए की वो कौम के आलिम के साथ कंधे से कंधा मिलकर चले ताकि मुल्क के साथ ही साथ कौम भी तरक्की करे।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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