सरफराज अहमद
वाराणसी। शब-ए-बरात मुस्लिमों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। शाबान नबी का महीना है और इसके बाद आने वाला रमजान रब का महीना है। मौलाना साकीबुल कादरी कहते हैं कि शाबान की 14 तारीख का दिन बीतने के बाद जो रात आती है वो शबे बरात की अज़ीम रात कहलाती है। इस शब को मग़फित की रात कहा जाता है। इस रात इबादत करने वालों की गुनाह रब माफ़ कर देता है। हिजरी कैलेंडर के अनुसार, हर साल शाबान महीने की 15 वीं तारीख को शब ए- बरात मनाया जाता है।
शब-ए-बरात दो शब्दों से मिलकर बना है रात और बरात यानी बरी होने की रात या गुनाहों से माफी की रात। मुसलमान इस खास रात को नमाज अदा करने के साथ अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। इसके साथ ही पूर्वजों की कब्रों पर जाकर अपने बुजुर्गों के मगफिरत की दुआ करते हैं। बता दें कि इसे एशिया में शबे बरात, रबी में लैलातुल बारात, इंडोनेशिया और मलेशिया में निस्फ़ स्याबान जैसे नामों से भी जाना जाता है।
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बरात शाबान महीने की 14 और 15 वीं तारीख के बीच की रात को मनाया जाता है। ये रात 14 का दिन बीतने के साथ मगरिब की अज़ान के साथ शुरू होती है और 15 शाबान को फजर की अज़ान के साथ समाप्त हो जाती है। इस साल शब-ए-बरात 13 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी।
इस्लाम धर्म में शब-ए-बरात काफी खास मानी जाती है, क्योंकि ये उन रातों में से एक मानी जाती है जब अल्लाह अपने बंदों की हर नेक और जायज़ दुआएं कुबुल करता हैं और उन्हें माफ़ी देता हैं। बता दें कि शब-ए-बारात के अलावा शुक्रवार की रात, ईद-उल-फितर से पहले की रात, ईद-उल-अजहा से पहले की रात, रज्जब की रात और शब-ए-कद्र की रात की दुआएं रब कुबुल करता हैं।
कैसे मनाते हैं शब-ए-बरात
मुस्लिम इस दिन रात के समय नफिल नमाज अदा करने के साथ कुरान पढ़ते हैं। इसके साथ ही अल्लाह से अपनी गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं। इसके साथ ही शब-ए-बरात परदो नफिल रोज़ा रखा जाता है। इसके अलावा इस रात को लोग कब्रिस्तान जाते हैं और इंतकाल फरमा चुके अपने अजीजों और बुजुर्गो की कब्र पर मगफिरत की दुआएं मांगते हैं।