संपादकीय
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अकेले ही आए थे अकेले ही जाएंगे, हां कुछ झूठे लोग…..
सम्पादकीयहकीकत जब सामने से गुजरती है तब ज़िन्दगी शर्मिन्दा होकर कहती हैं इस जहां में कोई नहीं अपना!सब कुछ है…
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सोचता था दर्द की दौलत से एक मैं….
सम्पादकीयजीवन के सफर में तमाम उतार चढाव आता जाता रहता है फिर भी आदमी दर्द को झेलते निरन्तर प्रगति की…
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संपादकीय- हूं तेरी कश्ती का ऐ जिंदगी,तू जहां मुझसे कहेगी, मैं वहीं उतर जाऊंगा..
उम्र का कारवां धीरे धीरे अपनी अमिट छाप छोड़ते हुए फिर कभी वापिस न आने के कसक के साथ लम्हा…
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