धर्मबलिया

बाबा मुक्तिनाथ के दरबार में माथा टेकने वाले भक्तों की मनोकामनायें होती पूर्ण

बलिया जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर गाजीपुर व बक्सर की सीमा पर कोटवा नारायणपुर में स्थित बाबा मुक्तिनाथ का मंदिर अति प्राचीन हैं। इसकी प्राचीनता इसी से लगाया जा सकता है कि इसका उल्लेख चीनी यात्री हवेंसांग ने अपनी डायरी में की हैं। प्राचीन काल में इस मंदिर को नारायण देव मंदिर के रुप में जाना जाता था। महाशिवरात्रि पर यहां हर साल आकर्षक शिव बारात निकाली जाती हैं। इसमें इलाके के हजारों की संख्या में श्रद्धालु शिव भक्त शामिल होते हैं। श्रद्धालुओं की मानें तो बाबा के दरबार में माथा टेकने वालों की मनोनकामनायें पूर्ण होती हैं।बाबा मुक्तिनाथ के सम्बन्ध में एक किम्बदंति है कि एक जमींदार जो कुष्ठ रोग से पीड़ित था।

एक रोज वह अपना खेत घूमने गया था। इसी बीच उसे शौच का एहसास हुआ। वह अपने नौकर से शौच के लिए पानी लाने को कहा। नौकर ने जहां आज बाबा मुक्तिनाथ का मंदिर है वहीं पर एक छोटा तालाब हुआ करता था। नौकर ने उसी तालाब से पानी लाकर शौच के लिए दे दिया। जमींदार जब पानी को हाथ लगाया तब उसके हाथ का कुष्ठ ठीक हो गया। जब जमींदार ने शौच के लिए लाये पानी के सम्बन्ध नौकर से पूछा तो वह डरते हुए तालाब का पानी होने की बात कही। इतना सुनते ही जमींदार तालाब में कूद गया और उसके शरीर का पूरा कुष्ठ ठीक हो गया। इस प्रकार जमींदार को कुष्ठ से मुक्ति मिल गई। जमींदार ने तालाब का रहस्य जानने के लिए उसकी खुदाई कराई तो उसमें से शिव लिंग मिला जिसे फिर से स्थापित कराकर मुक्तिनाथ के नाम से मंदिर बनवाया। साथ ही रागभोग के लिए पर्याप्त जमीन व पुजारी की व्यवस्था की। हवेंग सांग जो छठी ईसा पूर्व में चीन से भारत घूमने आया था उसने इसे नारायणदेव के भव्य मंदिर के रुप में अपनी डायरी में उल्लेख किया है।

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