
घरे घरे नेवता बा कुंभ खातिरआइल
केहू खुश भइल त केहू अचकचाइल!
नन्हकी के माई ,आ बबुआ के चाची
कान्ही पर बबुआ, आ कोरा में बाची!
पटल सगरे मोहाला,मच गइल हाला
चलल जाई कसहूं, मुहल्ला मुहल्ला!
मरद लगलन सोचे, कइसे कुंभ जाईं
छने में घरे मेहरारुन के झुंड बटोराई!
जेकरा से रहल ना,कबहूं लावाधाकी
उनहूं से लगली,बतियावे खूब काकी!
केहू लिहल कम्बल, केहू धइल रजाई
पुआ मरदुआ के लागल होखे छनाई!
कपारे पर मोटरी,आ हाथन में गंठरी
केहू बा मोटहन त केहू सूखल ठंठरी!
गइल कुंभ नहाये, संगम प्रयाग नगरी
केहू धइलस गाड़ी,केहू पैदल सगरी!

ट्रेन में फेकाइल,केहू ओइजे हेराइल
ए.सी. फेसी सब,एकही में सनाइल!
चलत चलत पैदल,परी कतनो छाला
जाइब संगम गिरि के ठेला पर ढ़ाला!
केहू गेट पर खाड़ा केहू बइठल भुइयां
सीट जेकरा के मिलल, बजावे टुंइया!
जे बइठल रहे भुइंया ,उहे दरकचाइल
परल हाथ पर लात, खूबे मरमराइल!
कहीं बा भगदड़ कहीं केहू धसोराइल
केहू बहरियाइल कहीं केहू कचराइल!
भींड़ में जे गइल,उहंवा बुद्धि हेराइल
जे ना चोंहपल उहो बा लुबलुबाइल!
भींड़न के भींड़ में आइल दुनिया मेला
दुनिया में अइसन ना मिली रेलम रेला!
बड़-छोट कहीं इचिको नाहीं बुझाइल
एकही संगे खाइल,एकही में नहाइल!
कहीं खूबे जाम, केनियो धरम धक्का
सनातन खातिर,जाके नहाइब पक्का!
कुछवू होखे ,हम संगम जरुर नहाइब
बानी कइले जवन पाप हम बहवाइब!
मिली पुन हमरा के सवरगे हम जाइब
रहबि नया हरदम कबो नाहीं बुढ़ाइब!
कहीं गंगा जी कहीं यमुना जी बहसु
सरस्वती मिलि त्रिवेणी संगही रहसु!
देश त देश ,विदेशो से लोगवा आइल
संगी साथी मिलले ,करेजा जुड़ाइल!
प्रयाग में संगम नहाई,सुख ले आइल
केहू हनुमान जी के देखिके अघाइल!
युग युगांतर के अक्षय वृक्ष अक्षयवट
बड़भागी बा जे देखी वृक्ष अक्षयवट!
भइल जवन हाला कि फेरु ना भेंटाई
कुंभ अइसन त अगिले जन्म में आई!
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सर्वाधिकार सुरक्षित
@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
#भोजपुरी