उत्तर प्रदेशधर्म प्रयागराज

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने किया धर्म न्यायालय का गठन

— सरकारों से भी की माॅग कि धार्मिक मामलों के लिए अलग धर्म न्यायालय  स्थापित हो
परमाराध्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य जी महाराज

संजय पांडेय
महाकुंभनगर। कोई समय था जब हमारे देश में न राज्य था, न राजा। न दण्ड था न दाण्डिक न्यायाधीश। धर्म सबके जीवन में था जिससे सारे समाज की परस्पर रक्षा हो जाती थी। समय बदला तो दुष्ट बलवानों ने निर्बलों को सताना शुरू किया। ऐसे में न्यायालयों की आवश्यकता पड़ी, राजा की आश्यकता हुई। इससे जनता को तात्कालिक रूप से लाभ हुआ पर धीरे-धीरे उसमें भी संवेदनशीलता की कमी आने लगी और आज वह न्याय कम और प्रोसीजर ज्यादा हो गया है। ऐसा हम नहीं उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश ने ही कहा है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती १००८ ने सनातन वैदिक हिन्दू आर्य परमधर्मसंसद् 1008 में धर्म न्यायालय की आवश्यकता विषय पर परम धर्मादेश जारी करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि समय-समय पर अलग-अलग सन्दर्भों में विधि विशेषज्ञों ने बताया है कि संविधान की धारा 14 धारा 25 के ऊपर अधिमान नहीं पानी चाहिए। अदालतों को यह तय नहीं करना चाहिए कि धर्म के आवश्यक तत्व क्या हैं? यह भी कि न्यायालयों को धार्मिक अभ्यासों व परम्पराओं में तब तक के सिवाय कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जब तक कि वह किसी बुराई अथवा शोषण प्रक्रिया को बढ़ावा न दे रही हों। संविधान की धारा 26 बी के अनुसार धार्मिक क्रियाओं के सम्पादन के अधिकार में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। साथ ही धर्म सम्बन्धित लाखों मुकदमे देश की न्यायालयों में लम्बे समय से लम्बित चल रहे हैं।
उन्होंने घोषित किया कि भारतीय न्यायालयों के भार को कम करने, उन्हें आवश्यकता पर धार्मिक विशेषज्ञता उपलब्ध कराने और धार्मिक मामलों को धार्मिक गहराई के साथ निर्णीत कराने के उद्देश्य से व्यक्तिगत स्तर पर एक धार्मिक न्यायालय का गठन किया जाता है और भारत के उच्चतम न्यायालय से भी अनुरोध किया जाता है कि परिवार न्यायालय की तरह एक धर्म न्यायालय भी आरम्भ करें, जहाँ धार्मिक मामलों का निपटारा हो सके।

आज विषय स्थापना साध्वी पूर्णाम्बा जी ने किया। विषय विशेषज्ञ के रूप में डा अनिल शुक्ल, एस के द्विवेदी, रमेश उपाध्याय जी ने अपना उद्बोधन प्रकट किया। प्रमुख रूप से स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन्दः जी तथा सन्त गोपालदास जी उपस्थित रहे।

चर्चा में सुनील ठाकुर जी, सची शुक्ला जी, डॉ एस के द्विवेदी जी, अनुसुईया प्रसाद उनियाल जी, सचिन जानी जी, डॉ गजेंद्र सिंह यादव जी, मनोरंजन पांडे जी, आदेश सोनी जी, सक्षम सिंह जी, बिसन दत्त शर्मा जी, संजय जैन जी, देवेन मनोहर चौधरी जी, गोपाल दास जी, गिरिजेश कुमार पांडे जी। जितेंद्र खुराना नचिकेता जी, जोशी जी, कमल महाप्रभु जी, संत त्यागी जी, आचार्य राजेंद्र प्रसाद शास्त्री जी, सतीश अग्रहरि जी, महेश कुमार आहूजा जी, सर्वभूतहृदयानंद जी, आदि अनेक विद्वानों ने भाग लिया। संसदीय कार्य का कुशल सञ्चालन प्रकर धर्माधीश देवेन्द्र पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ जायोद्घोष से हुआ तथा अन्त में परमाराध्य ने परमधर्मादेश जारी किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button