धर्मवाराणसी

न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखंड लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन: मुकुंद जी

– जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समुचित समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया

काशी। न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का था। अहिल्याबाई के प्रशासनिक नेतृत्व को देखते हुए ’लेस गवर्नमेंट मोर गवर्नेंस’ सदृश सूक्ति चरितार्थ होती प्रतीत होती है। जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया। उक्त विचार लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री मुकुंद जी ने व्यक्त किया।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन से मातृत्व, नेतृत्व और कृतित्व धर्म की शिक्षा लेनी चाहिए। आज के समय में ’मातृत्व’ में होते क्षरण को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि लोकमाता अहिल्याबाई को याद किया जाए। साथ ही अपने नेतृत्व में उन्होंने जो लोककल्याणकारी कार्य किए वे अभूतपूर्व हैं। भारतीय समाज में विश्वास और आत्मसम्मान जगाने का कार्य लोकमाता ने मंदिरों और घाटों के पुनरोद्धार के माध्यम से किया। उन्होंने आगे कहा कि यूरोपीय स्त्रियों और भारतीय स्त्रियों को तुलनात्मक रूप में देखने से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति राजनीति, प्रशासन और धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक उत्तम थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं अहिल्याबाई होलकर हैं। स्त्री और पुरुष की समानता की बात करते हुए मुकुंद जी ने कहा कि इस समाज को पुरुषत्व की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही मातृत्व की भी। आज अर्थशास्त्री बताते हैं कि राष्ट्र की जीडीपी में महिलाओं का भरपूर योगदान हैं। वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सेवा के एक लाख तीस हजार से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। जिनमें महिलाएं आगे हैं। इन कार्यों में निर्णय लेने की क्षमता पुरुषों की तुलना में मातृशक्ति में कहीं अधिक सुदृढ़ है। माताएं संवेदनशीलता, एकाग्रता में पुरुषों से कहीं आगे हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी जिस भी माध्यम से अहिल्याबाई के संदेशों को ग्रहण करती हो, हमें उसी माध्यम से ऐसे महापुरुषों के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, यही हमारे इस कार्यक्रम का भी ध्येय है। कार्यक्रम के आयोजन तिथि पर मुख्य वक्ता ने बताया कि 11 दिसम्बर को ही देवी अहिल्याबाई होलकर मालवा राज्य का शासन सम्भाला। आज गीता जयन्ती पर श्रीमद्भगवत्गीता के एक श्लोक का उदाहरण देते हुए कहा कि अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण भगवान कहते है ‘‘यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।। अर्थात श्रेष्ठ जन अपने जीवन में जो जो आचरण करते हैं समान्यजन उनके जीवन से प्रेरित होते हैं।
विशिष्ट अतिथि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदय सिंह राजे होलकर जी ने कहा कि पुण्यश्लोक अहिल्याबाई का जीवन साधारण नहीं रहा। अपने ही जीवन काल में उन्हें सास, श्वसुर, पति, पुत्र-पुत्री सभी की मृत्यु देखनी पड़ी। पति के साथ सती होने से श्वसुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें रोका। घाट, धर्मशाला का निर्माण अथवा मन्दिरों का जीर्णोंद्धार लोकमाता ने अपने स्त्रीधन से किया था। देवी अहिल्याबाई होलकर कुशल प्रशासिका के साथ आध्यात्मिक महिला भी थी। उनके हाथ की लिखी श्रीमद्भागवत गीता भोपाल संग्रहालय में संरक्षित है। लोकमाता ने धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये जो 300 वर्ष बाद भी आज याद किए जा रहे हैं और किये जाते रहेंगे। महेश्वर में सभी छोटे बड़े लोगों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करके समता और समभाव प्रदर्शित करना तथा सामान्य जन की जीविका हेतु महेश्वर में हथकरघा उद्योग की स्थापना करना इत्यादि लोकमाता के कल्याणकारी कार्यों में प्रतिष्ठित है।
विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए। देश का भविष्य युवा पीढी के हाथों में ही होता है। लोकमाता के तीन विशिष्ट भूमिकाएं सैनिक, प्रजावत्सल ममतामयी अभिभावक और शिक्षिका जिनसे प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को संवारा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह समिति की अखिल भारतीय अध्यक्षा प्रो.चंद्रकला पाड़िया जी ने कहा कि भारतीय नारी उस पक्षी की तरह है जो दिन में तो आकाश में विचरण करती है, लेकिन शाम होते-होते वह अपने नीड़ में वापस आने की इच्छा भी रखती है। उन्होंने महादेवी वर्मा जी के ’श्रृंखला की कड़ियां’ निबंध-संग्रह का उल्लेख करते हुए लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का प्रारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा देवी अहिल्या बाई के तैल चित्र और मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। मंगलाचरण वेंकटरमन घनपाठी तथा संगीत मंचकला संकाय की छात्राओं ने कुलगीत गायन किया। मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं स्वागत प्रान्त सम्पर्क प्रमुख दीनदयाल पाण्डेय ने किया। आयोजन समिति की सदस्या डॉ. नीरजा माधव जी ने विषय प्रस्तावना की।

वो अहिल्या है नृत्य नाटिका से जीवन्त हुआ लोकमाता का जीवन चरित –

निवेदिता शिक्षा सदन एवं संत अतुलानंद के छात्र- छात्राओं ने देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित लघु नाटिकाओं का मंचन किया। छात्राओं के प्रस्तुति से लोकमाता का जीवन चरित की प्रस्तुति ने लोगों को प्रभावित किया। संत अतुलानन्द के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के स्थापना के प्रसंग को प्रदर्शित किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त की जागरण पत्रिका ’चेतना प्रवाह’ के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही गुंजन नंदा जी की पुस्तक देवी अहिल्याबाई : महेश्वर से मोक्षदायिनी काशी तक का भी लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम में स्वतंत्रता भवन की वीथिका में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर से संबंधित चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन भी हुआ।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गौसेवा संयोजक अजित महापात्रा, अ.भा.सामाजिक समरसता संयोजक रवीन्द्र किलकोले, प्रज्ञा प्रवाह के अ.भा.कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी, क्षेत्र सेवा प्रमुख यृद्धवीर जी, क्षेत्र पर्यावरण संयोजक अजय जी, प्रान्त संघचालक अंगराज जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी सहित बड़ी संख्या में काशी के गणमान्य नागरिक एवं मातृशक्ति की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन डॉ. भावना त्रिवेदी और गुंजन नंदा जी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामनारायण द्विवेदी जी ने किया।

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