यूपी की धर्मनगरी, कार्तिक पूर्णिमा तक गुलजार

अशोक कुमार मिश्र
उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी, पांच नवंबर कार्तिक पूर्णिमा तक गुलजार रहेगी अयोध्या, काशी, मथुरा, नैमिषारण्य, चित्रकूट, बिठूर व सुल्तानपुर जिले की विजेथुआ महावीरन मंदिर आदि तीर्थस्थलों पर वैसे तो पूरे कार्तिक माह में मेला जैसा माहौल रहता है, लेकिन बड़ी एकादशी (देव उठनी एकादशी) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा (देव दीपावली) तक दीपदान, भजन-कीर्तन और परिक्रमा आदि के विशेष आयोजन होते हैं।
इस वर्ष 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है।मथुरा के बरसाने, गोवर्धन व वृंदावन आदि में विदेश से आए लखों भक्त दर्शन पूजन के साथ जहां दीपदान व परिक्रमा आदि कर रहे हैं वहीं वृंदावन के छठीकरा मार्ग पर चंद्रोदय मंदिर में देश विदेश के हजारों भक्तों की मजूदगी में धार्मिक आयोजन किए जा रहे है। यहां 31 अक्टूबर को जहां भव्य शोभायात्रा निकाली गई वहीं 1 नवंबर को यमुना व 2 नवंबर को मंदिर परिसर स्थित चंद्रोदय सरोवर में नौका विहार का आयोजन किया गया। प्रदेश के सभी धर्म नगरी के साथ सुल्तानपुर जिले के विजेथुआ महावीरन मंदिर परिसर में भी 5 नवम्बर को भव्य देव दीपावली मनाई जाएगी। यहां श्री हनुमान जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर 10 से 19 अक्टूबर तक विजेथुआ महोत्सव आयोजित किया गया था।
कार्तिक माह भगवान विष्णु, भगवान शिव, और माता तुलसी की उपासना का होता है। विशेष रूप से देवउठनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक के पांच दिन (पंच दिवसीय पर्व) का धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व उत्तर प्रदेश के प्रत्येक तीर्थस्थल पर अत्यंत भव्य रूप में मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु चार महीने के योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, नैमिषारण्य, चित्रकूट आदि स्थलों पर विष्णु सहस्त्रनाम, तुलसी विवाह और दीपदान का विशेष आयोजन होता है। इस दिन से विवाह, मांगलिक कार्यों की पुनः शुरुआत मानी जाती है। कार्तिक चतुर्दशी का दिन भगवान शिव, विष्णु और सूर्य की उपासना के लिए श्रेष्ठ माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक मास का सर्वाधिक पावन दिन है। वाराणसी में गंगा घाटों पर लाखों दीपों से “देव दीपावली” मनाई जाती है। अयोध्या, नैमिषारण्य, चित्रकूट, बिठूर, मथुरा, आदि तीर्थस्थलों पर भी दीपदान, भजन-कीर्तन और मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा, नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा और वृंदावन व गोवर्धन आदि की परिक्रमा कार्तिक मास में विशेष फलदाई है।
अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है और यहाँ की परिक्रमा का विशेष महत्व त्रेतायुग से माना गया है। मान्यता है कि कार्तिक मास में अयोध्या की परिक्रमा करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह परिक्रमा “अयोध्या परिक्रमा” या “पंचकोसी परिक्रमा” के नाम से प्रसिद्ध है। यह परिक्रमा कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) के अवसर पर की जाती है। अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा वर्ष में दो बार चैत्र मास और कार्तिक मास में होती है।
कार्तिक की चौरासी कोसी परिक्रमा आमतौर पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। यह परिक्रमा अयोध्या के चारों ओर लगभग 84 कोस (लगभग 250 किलोमीटर) के क्षेत्र में की जाती है। यह मार्ग अयोध्या, भरतकुंड (नंदीग्राम), देवीपाटन, सोहावल, रामकोट, एवं अनेक पवित्र स्थानों से होकर गुजरता है। माना जाता है कि इस क्षेत्र में कलयुग का प्रवेश नहीं है, अर्थात् यह भूमि सतयुग जैसी पवित्र और कल्याणकारी है। कार्तिक मास में विशेष रूप से देवउठनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक अयोध्या में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
मथुरा, अयोध्या, वाराणसी और नैमिषारण्य न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पूजनीय हैं, बल्कि इन चारों तीर्थों की परिक्रमा का महत्व भी असंख्य जन्मों के पापों का नाश करने वाला माना गया है। 84 कोस की ब्रज परिक्रमा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि का प्रतीक है। 252 किमी की इस यात्रा में भक्त ब्रज के सभी पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल से युवावस्था तक विभिन्न दिव्य लीलाएँ, जैसे माखन चोरी, गोवर्धन पूजा, रास लीला आदि की। मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव आदि से गुजरने वाली यह परिक्रमा 84 कोसी ब्रज यात्रा या ब्रज मंडल परिक्रमा कहलाती है।
पूर्ण परिक्रमा में लगभग 21 दिन लगते हैं। कहा जाता है कि एक बार 84 कोसी ब्रज परिक्रमा करने से 84 लाख योनियों से मुक्ति मिलती है। गिरिराज गोवर्धन की 7 कोस परिक्रमा पूरे वर्ष लोग करते हैं। प्रत्येक पूर्णिमा को यहां लाखों लोग परिक्रमा करते हैं।काशी (वाराणसी) को धर्म ग्रंथों में आनंदवन कहा गया है। इसकी परिक्रमा 5 कोस, लगभग15 किलोमीटर की होती है। काशी की पंचकोशी परिक्रमा का उल्लेख स्कंद पुराण और काशी खंड में मिलता है। इस परिक्रमा में पांच प्रमुख स्थान, कर्दमेश्वर, भीमचंडी, रूपेश्वर, भिमदित्य और ऋषिपट्टन (सारनाथ) की यात्रा की जाती है। इसे प्रायः धनतेरस से कार्तिक पूर्णिमा के बीच करना शुभ माना गया है। इस यात्रा से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। वाराणसी में मरने से मुक्ति मिलती है, किंतु जीवित अवस्था में पंचकोशी परिक्रमा करने से भी वही फल मिलता है। नैमिषारण्य (नैमिष भूमि) भारत के सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक है, जिसका उल्लेख वेद, पुराण और महाभारत में मिलता है। नैमिषारण्य वह पवित्र भूमि जहाँ कलियुग का प्रवेश नहीं है। नैमिषारण्य को ‘नैमिष तीर्थ’, ‘नैमिषारण्य धाम’ या ‘नैमिष वन’ भी कहा जाता है। यह स्थान 88,000 ऋषियों की तपोभूमि रहा है। यहाँ महर्षि शौनक के नेतृत्व में भगवान व्यास द्वारा पुराणों का उपदेश हुआ था। यहीं सूतजी ने भागवत, स्कंद, पद्म, ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों की कथा सुनाई थी।शास्त्रों में वर्णन है कि नैमिषारण्य क्षेत्र 84 कोस के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
यह 84 कोसी परिधि तीर्थमंडल कहलाता है। इसी क्षेत्र में अनेक तीर्थ, जैसे चक्रतीर्थ, व्यास गद्दी, ललिता देवी, हनुमानगढ़ी, बालाजी धाम, देवतीर्थ, पवित्र गोमती उद्गम आदि स्थित हैं। प्राचीन मान्यता है कि नैमिषारण्य वह एकमात्र क्षेत्र है जहाँ कलियुग का प्रभाव नहीं है। स्कंद पुराण और विष्णु पुराण दोनों में उल्लेख है कि जब कलियुग का प्रारंभ हुआ, तो सभी ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा से पूछा कि “हे प्रभो, कलियुग में वह कौन-सा स्थान होगा जहाँ धर्म सुरक्षित रहेगा। भगवान ब्रह्मा ने कहा, “यत्र नैमिषारण्यं तत्र धर्मोऽवश्यं तिष्ठति। कलिः प्रवेशं न लभते, तत्र सदा हरिः वसति॥” अर्थात जहाँ नैमिषारण्य है, वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता; वहाँ साक्षात भगवान विष्णु निवास करते हैं। देवताओं ने कालचक्र को पृथ्वी पर गिराया था, और जहाँ वह धरती में समा गया, वही स्थान नैमिषारण्य कहलाया। वैसे तो यहां परिक्रमा वर्ष भर होती है, किन्तु कार्तिक मास, माघ मास और पूर्णिमा तिथियों में विशेष रूप से लाखों श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं।
कार्तिक मास में भगवान विष्णु “नैमिष चक्रतीर्थ” में विशेष रूप से पूजित होते हैं। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक में परिक्रमा करने से सहस्र अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है। भक्त इस समय 12 कोसी परिक्रमा करते हैं, जिसे “नैमिष क्षेत्र परिधि” भी कहा जाता है। कार्तिक में नैमिष तीर्थ में स्नान व परिक्रमा करने से सब पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। नैमिषारण्य का यह अर्थ है कि नैमिष (क्षण) व आरण्य (वन) अर्थात वह वन जहाँ एक क्षण में (नैमिष में) पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भूमि पृथ्वी पर देवलोक का प्रतीक मानी गई है। यहाँ आज भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से यहाँ स्नान, दान, जप या परिक्रमा करता है, उसे पितृलोक, देवलोक और अंततः वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।




