धर्मवाराणसी

अवतरित होने और जन्म लेने में फर्क होता है: स्वामी विश्वमातानंद

वाराणसी । रामकृष्ण अद्वैत आश्रम, लक्सा में दो दिवसीय मानस प्रवचन का आयोजन किया गया जिसका शुभारंभ आश्रम अध्यक्ष स्वामी विश्वात्मानन्द जी ने स्वागत भाषण व प्रवचनकर्ता के परिचय से किया। गुजरात से पधारे रामकृष्ण मठ, भुज के महंत स्वामी सुखानन्द जी महाराज व्यास पीठ पर विराजमान होते ही रामनाम की पावन गंगा में भक्तों को डुबकी लगवाने लगे। भगवान के रामावतार की पृष्ठभूमि पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अवतरित होने और जन्म लेने में फर्क होता है। अवतरित होने का अर्थ है ‘प्रकटीकरण’, यानि अचानक से अस्तित्व में आ जाना या सामने आ जाना। इस ब्रह्मांड को एक सर्वोच्च निर्गुण, निराकर सत्ता चला रही है जो अपनी शक्तियों को प्रकट नहीं कर सकती। जब वही निर्गुण और निराकार शक्ति साकार रूप में हमारे सामने आ जाती है और अपनी शक्तियों तथा दिव्यता को प्रकट करने में सक्षम होती है, तो उसे हम अवतार कहते हैं। यही है श्रीहरि की मानव लीला। अवतार को उद्देश्यों के आधार पर पांच श्रेणियों में बांटा गया है – अंशांशावतार, अंशावतार, कलावतार, पूर्णावतार एवं परिपूर्णावतार। यदि अवतार के साथ-साथ चमत्कार भी रहे लेकिन लोकमर्यादा के साथ, तो उसे ‘पूर्णावतार’ कहते हैं, जैसे कि प्रभु राम। सुखानन्द जी कहते हैं कि राम इंद्रियों का सूरज है। उसी के तेज से शरीर और उसकी इंद्रियाँ चल रही हैं। जब शरीर रूपी रथ पर चेतना रूपी राम आरूढ़ होकर इस का संचालन अपने हाथों में लेते हैं तभी वह सजीव होकर अभिव्यक्ति करता है। शरीर दथरथ है तो सारथी राम, शरीर शव है तो शिव (चेतना) राम…। राम से वियोग होते ही दशरथ का अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। इन दोनों का मिलन ही अनुभव और अभिव्यक्ति का, जड़ और चेतना का, परा और प्रकृति का मिलन है। अपने सारथी राम के बिना दशरथ उद्देश्यहीन है और दशरथ के बिना राम अभिव्यक्ति विहीन। संगीतमय राम कथा में भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ रही। कथा की समाप्ति पर प्रसाद वितरण हुआ। कल पुनः संध्या 6 बजे से भगवान श्री राम की अवतार लीला पर प्रवचन होगा।

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