नई दिल्लीवाराणसी

दस साल बाद सर्वोच्च न्यायालय से मिला इन्हें न्याय

पत्रकारवार्ता में बीएन जान ने दी जीत जानकारी

वाराणसी। आज कैंटोनमेंट स्थित बंगला नंबर 12 में बी.एन. जॉन एवं उनकी पत्नी ने पत्रकारों से बातचीत की। बताया कि एक दस साल पुराने मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट में उन्हें ऐतिहासिक जीत मिली है। बी.एन. जॉन ने बताया कि वह एक छात्रावास के स्वामी और प्रबंधक थे, जिसे एक गैर-सरकारी संगठन “संपूर्णा डेवलपमेंट इंडिया” द्वारा संचालित किया जाता था। इस संगठन का उद्देश्य वंचित बच्चों के लिए आवास, शिक्षा और अन्य आवश्यकताओं की सुविधाएं प्रदान करना था। बी.एन. जॉन के अनुसार, सैम अब्राहम एवं के.वी. अब्राहम और उनके सहियोगियों द्वारा जमीन हड़पने की नीयत से उनके (बी एन जॉन) के खिलाफ कई फर्जी मुकदमें दर्ज किए है। इनमें से चार मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया है।

3 जून 2015 को सैम अब्राहम के आवेदन पर अधिकारियों ने बी.एन. जॉन के छात्रावास पर छापा मारा। और यह झूठा दावा किया गया कि छात्रावास किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहा है और छात्रावास में रहने वाले बच्चों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग की। बी.एन. जॉन पर थाना कैंट में धारा 353 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसमें अधिकारियों पर हमले का आरोप लगाया गया। बीएन जान ने कहा कि मुझे पर फर्जी मुकदमा और गलत आरोप लगाएं गये।

जान ने एक सवाल के जवाब में कहा कि 20 जून 2015 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी की अदालत में चार्जशीट दायर की गई। इसमें आईपीसी की धारा 353 और 186 के तहत आरोप लगाए गए। बाद में बी.एन. जॉन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील करते हुए चार्जशीट, संज्ञान आदेश और मामले में सभी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अपील के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपील की सुनवाई की और टिप्पणी की, “हम संतुष्ट हैं कि अपीलकर्ता ने वाराणसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बी.एन. जॉन के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का मामला प्रस्तुत किया है।” सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी, जिसमें बी.एन. जॉन एवं उनकी पत्नी पर ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारियों पर हमले का आरोप था, जो की रद्द कर दिया गया। अदालत ने कहा कि आरोपित अपराध की जांच प्रारंभिक चरण से ही कानूनी खामियों से ग्रस्त थी। पीठ ने हरियाणा राज्य बनाम च. भजनलाल और अन्य के ऐतिहासिक मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने मामलों को रद्द करने से संबंधित कई दिशा-निर्देश दिए थे। इनमें से एक यह था कि यदि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्ट्या किसी अपराध का गठन नहीं करता है, तो प्राथमिकी को रद्द किया जा सकता है।

इस संदर्भ में, 2 जनवरी 2025 को सर्वोच न्यायालय ने मेरे (बी.एन. जॉन) के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और सच्चाई की जीत हुई। बीएन जान ने कहा कि उनकी जीत गरीबों और उन वंचित बच्चों की जीत है जिसके परोपकारी कार्य के लिए वो सदैव लगे रहते हैं।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button