वाराणसी

शहीद वीर अब्दुल हमीद पर सियासत

स्कूल से नाम हटाए जाने पर नाराज़गी

 गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव के स्कूल की हाल में ही रंगाई-पुताई की गई। पेंट करने के बाद आनन-फानन में स्कूल का नाम बदलकर पीएम श्री कम्पोजिट विद्यालय कर दिया गया। इसे लेकर पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने नाराजगी जताई है। शहीद हमीद के पौत्र भी इससे दुखी हैं 

सरफराज अहमद

वाराणसी। पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने एक खबर का स्क्रीनशॉर्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शेयर करते हुए लिखा है कि ये बेहद निंदनीय और अशोभनीय है कि देश के लिए शहीद होने से अधिक महत्व किसी और को दिया जा रहा है।अब बस यही बाक़ी रह गया है कि कुछ लोग देश का नाम भारत की जगह भाजपा रख दें, जिन्होंने न आज़ादी दिलाने में कोई भूमिका निभाई न ही आज़ादी बचाने में वो शहीदों का महत्व क्या जानें। सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने परम वीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद का नाम स्कूल से हटाए जाने पर कहा कि गाजीपुर जिले में एक प्राथमिक विद्यालय के प्रवेश द्वार से 1965 के युद्ध के नायक वीर अब्दुल हमीद का नाम हटाया जाना बेहद निंदनीय और अशोभनीय है।

शहीद वीर अब्दुल हमीद के परिवार के लोगों ने भी स्कूल की बाहरी दीवार और गेट से वीर अब्दुल हमीद का नाम हटाए जाने का विरोध किया।इसी स्कूल में कभी परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद ने शिक्षा हासिल ग्रहण की थी।परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हामिद के पौत्र जमील अहमद ने कहा कि पांच दिन पहले स्कूल की रंगाई-पुताई की गई थी।प्रवेश द्वार पर शहीद हमीद विद्यालय की जगह पीएम श्री कम्पोजिट स्कूल लिख दिया गया।

गाजीपुर के धामूपुर स्थित परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद विद्यालय का नाम बदलकर पीएम श्री कंपोजिट विद्यालय करने का कांग्रेस ने भी विरोध किया है। कांग्रेस के वाराणसी महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने इसे शहीदों का अपमान करार दिया। राघवेन्द्र चौबे ने कहा कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका के अजय समझे जाने वाले सात पैटन टैंकों को धवस्त करने वाले परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद का नाम हटाया जाना दुखद है। जबकि वीर अब्दुल हमीद इसी विद्यालय के विद्यार्थी थे। आज भी विद्यालय के रजिस्टर में उनका नाम दर्ज है।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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