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काशी तमिल संगम के कार्यक्रम में विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर तथा 50 देश के प्रतिनिधि हुए शामिल

प्रत्येक देशवासी के लिए वह सांस्कृतिक शक्ति है काशी, जिससे सभी महसूस करते हैं जुड़ावः विदेश मंत्री

विरासत का उत्सव मनाने से ही जीवंत रहती है संस्कृति, काशी तमिल संगमम इस बात को कर रहा साकारः डॉ. जयशंकर


वाराणसी। भारत दुनिया को सह-अस्तित्व और समरसता का मार्ग दिखाया है, खासतौर से ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय हितों के टकराव के कारण संघर्ष हो रहे हैं। काशी-तमिल संगमम 3.0 के अंतर्गत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पंडित ओंकार नाथ ठाकुर सभागार में आयोजित एक विशेष बौद्धिक सत्र के दौरान यह विचार उभरकर सामने आया। इस सत्र में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और विभिन्न देशों के 45 राजदूतों ने तमिल प्रतिनिधियों के साथ संवाद किया। इस सत्र ने वैश्विक प्रतिनिधियों को न केवल काशी और कांची की महान संस्कृतियों के संगम को नजदीक से देखने का अवसर मिला बल्कि उन्हें नई दिल्ली से परे भारत को समझने का अनूठा मौका भी प्रदान किया।

मुख्य अतिथि के रूप में सत्र को संबोधित करते हुए, डॉ. एस. जयशंकर ने काशी को पूरे भारत के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र बताया, जिससे देश के हर कोने का व्यक्ति गहराई से जुड़ा हुआ महसूस करता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के लोगों का काशी के प्रति विशेष लगाव है और काशी-तमिल संगमम इस अनूठे संबंध का उत्सव है। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत विविधताओं की भूमि है, और यह अक्सर लोगों को आश्चर्यचकित करता है कि इतनी विभिन्न भाषाओं, परंपराओं और विश्वासों के बावजूद यह देश एक सूत्र में कैसे बंधा हुआ है। उन्होंने कहा कि इस विविधता में निहित एकता ही भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ती है। उन्होंने राजदूतों को बताया कि काशी-तमिल संगमम विविधता में एकता के उत्सव का एक आदर्श उदाहरण है, जैसा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने परिकल्पित किया है।

डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि भारत की गौरवशाली विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए इसका उत्सव मनाना जरूरी है। साथ ही दुनिया को भारत के स्वर्णिम इतिहास और इसकी जड़ों के बारे में इससे पता चलता है। उन्होंने कहा कि विरासत के उत्सव के माध्यम से ही संस्कृति जीवंत रहती हैं। भारत सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। यह विचार उन्होंने तमिल प्रतिनिधि श्री राजगोपालन के एक प्रश्न के उत्तर में साझा किए, जिन्होंने पूछा कि इस विशेष उत्सव के दौरान मंत्री किन प्रमुख पहलुओं को उजागर करना चाहेंगे।

विदेश मंत्री ने कहा कि परंपरा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में सहायक होती है, इसी संदर्भ में भारतीय ज्ञान प्रणाली की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने आगे बताया कि भारतीय विश्वविद्यालय ड्रोन तकनीक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उन्नत वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। साथ ही डॉ. जयशंकर ने यह उम्मीद जताया कि भविष्य में इन संस्थानों से और अधिक प्रगतिशील पहल सामने आएंगी। यह विचार उन्होंने तमिल प्रतिनिधि रुद्रन के प्रश्न के उत्तर में साझा किए, जिन्होंने उल्लेख किया कि भारत अतीत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी रहा है और जिसने अपनी तकनीकी उपलब्धियों को दुनिया के साथ साझा भी किया था। उन्होंने यह जानना चाहा कि क्या इस विषय पर कोई विशेष अध्ययन किया जाएगा।

एक अन्य तमिल प्रतिनिधि, राजेश कुमार ने भारत की वैश्विक भूमिका को रेखांकित किया और पूछा कि इतनी भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद दुनिया भर के राजदूत भारत को कैसे देखते हैं। इस पर सोमालिया के राजदूत ने उत्तर दिया कि समरूपता (होमोजेनेसिटी) कोई समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे एक अरब से अधिक लोग अपनी अलग-अलग मान्यताओं और विचारधाराओं के साथ मिलकर सौहार्दपूर्वक रह सकते हैं। उन्होंने अफ्रीका में जारी संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की समृद्ध विविधता ही इस राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है, जहाँ लोग साझा मूल्यों में विश्वास रखते हैं और एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सद्भाव दिखाते हैं।

एरट्रिया के राजनयिक ने काशी की यात्रा और दो महान संस्कृतियों के समागम को देखने के विशेष अवसर की सराहना की। उन्होंने अपने भारतीय शिक्षकों को याद करते हुए कहा कि वे भारत के लोगों, संस्कृति और विरासत के बारे में बताया करते थे। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि भारत के विभिन्न हिस्सों के लोगों के बीच जो संबंध हैं, वही इस देश को एक सूत्र में बांधते हैं।

रवांडा के उप उच्चायुक्त ने भी इस चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि भारतीयों के बीच जो एकजुटता और समरसता है, वह पूरी दुनिया के लिए एक सीख है। उन्होंने दुनिया भर में जारी संघर्षों और युद्धों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीयों द्वारा अपनाई गई सद्भावना और समरसता अनुकरणीय है।

इसी क्रम में आइसलैंड के राजदूत ने कहा कि भारत की विविधता इसकी सबसे बड़ी ताकत है, जो इसके साझा मूल्यों और संस्कृति में परिलक्षित होती है। जमैका के उच्चायुक्त ने इस बात का उल्लेख किया कि इस वर्ष जमैका में भारतीयों के आगमन के 108 वर्ष पूरे होने पर उत्सव मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और जमैका के लोगों के संघर्ष और सफलता की कई अनकही कहानियाँ हैं जिन्हें सामने लाने की जरूरत है। उन्होंने भारत में कैरेबियन अध्ययन केंद्र स्थापित करने का भी सुझाव दिया।

अतिथियों का स्वागत करते हुए, प्रो. संजय कुमार, कार्यवाहक कुलपति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने कहा कि विभिन्न देशों के मिशन प्रमुखों की उपस्थिति भारत की वैश्विक पहुंच और ज्ञान तथा संस्कृति के माध्यम से सभ्यताओं के बीच स्थापित होने वाले ऐतिहासिक संबंधों का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बीएचयू ज्ञान, राष्ट्रीय एकता और शैक्षणिक उत्कृष्टता का केंद्र रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय की वैश्विक उपस्थिति और विदेशी विशेषज्ञों की भागीदारी का उल्लेख किया। प्रो. कुमार ने बताया कि बीएचयू एक वैश्विक संस्थान के रूप में स्थापित हो रहा है, जहां दुनिया भर से विद्वान, शोधार्थी और छात्र आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो संभवतः भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों में सबसे अधिक है।

सत्र का संचालन आईआईटी-बीएचयू के प्रोफेसर वी. रामनाथन ने किया, जिसमें भारत की साझा विरासत के उत्सव और इसके वैश्विक नेतृत्व की भूमिका पर गहन विचार-विमर्श हुआ। वह विरासत जिसने भारत को न केवल एक वैश्विक शक्ति के रूप में बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो दुनिया के लिए एक मिसाल है।

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