वाराणसी

गंगा पार दफनाया ‘चाइनीज मांझा, बताया मांझा नहीं राक्षस’

सपा ने किया नमो घाट से अस्सी घाट तक मोटर बोट पर अनोखा विरोध

सरफराज अहमद

वाराणसी। गंगा की लहरों पर अचानक मोटर बोट में राक्षस रुपी पुतला दिखा तो लोगों में कौतूहल मच गया। मोटर बोट पर यह राक्षस रुपी पुतला ‘चाइनीज मांझा राक्षस’ का था। जिसे सपा ने किशन दीक्षित और सपा कार्यकर्ताओं ने बनवाया था। पुलिस प्रशासन के विरोध के बीच 21 फिट ऊंचे इस पुतले को गंगा में सराय मोहना घाट से बोट पर सवार किया गया और नमो घाट होते हुए यह राक्षस का पुतला दशाश्वमेध घाट, फिर अस्सी घाट गया। जहां गंगा उस पार उसे रेत में दफन किया गया।

बता दें कि इसी पुतले को जलाने से सपा कार्यकर्ताओं को शनिवार को एसीपी कोतवाली ने भैंसासुर घाट पर जलाने से रोक दिया था। और परमिशन न होने की बात कही थी। इस दौरान सपा नेता किशन दीक्षित ने कहा कि चाइनीज मांझा का आतंक देशभर में फैला हुआ है। यह मांझा न केवल पक्षियों की जान ले रहा है, बल्कि इंसानों की भी जान ले रहा है। आए दिन चाइनीज मांझा के कारण लोगों की मौत की खबरें सुनने को मिलती हैं। फिर भी यह मौत का सामान बाजार में खुलेआम बिक रहा है। यह सवाल उठता है कि जब चाइनीज मांझा पर प्रतिबंध है, तो फिर यह बाजार में कैसे बिक रहा है? इसका जवाब है सत्ता और प्रशासन की नाकामी। सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण यह मौत का सामान बाजार में बिक रहा है।

इस दौरान मोटर बोट पर मौजूद पूर्व पार्षद मनोज यादव ने कहा कि चाइनीज मांझा के कारण होने वाली मौतों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यह एक गंभीर समस्या है, जिसका समाधान जल्दी से जल्दी निकाला जाना चाहिए। सरकार और प्रशासन को चाइनीज मांझा की बिक्री पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। इसके अलावा, लोगों को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि चाइनीज मांझा का उपयोग न करें।

21 फीट का चाइनीज राक्षस का पुतला गंगा घाट किनारे लोगों के कौतूहल का विषय बना रहा। पर्यटकों के साथ ही काशीवासी पुतले की वीडियो और फोटोग्राफी की। विरोध यात्रा में शामिल होने वाले लोगों ने कहा कि वे चाइनीज मांझे के विरोध में हैं और सरकार से इसके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रहे थे। इसके अलावा जमकर सत्ता और शासन के खिलाफ नारेबाजी करते चल रहे थे।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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