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उल्लेखनीय खोज: BHU के शोधकर्ताओं ने देश के विभिन्न हिस्सों में साईनोबैक्टीरिया की नौ नई प्रजातियों की पहचान की

त्रिपुरा, नागालैंड, असम और मध्य प्रदेश में खोजी गई हैं नई प्रजातियां
– सूक्ष्म जीव विविधता के बारे में समझ को और बेहतर करने तथा जैव विविधता के संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है यह शोध


वाराणसी । काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों से साइनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) की नौ नई प्रजातियों की खोज करके एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक सफलता हासिल की है। यह खोज न केवल सूक्ष्मजीव विविधता के बारे में हमारी समझ को समृद्ध करती है बल्कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जैव विविधता संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सिंह के शोध समूह द्वारा किया गया यह शोध, भारत के दो पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर केंद्रित है। पूर्वोत्तर भारत के तीन राज्यों, त्रिपुरा, नागालैंड और असम के जैव विविधता हॉटस्पॉट्स से सात नई साइनोबैक्टीरियल प्रजातियां की खोज की गई है जबकि शेष दो प्रजातियों की पहचान मध्य प्रदेश में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व से की गई है। यह शोध न केवल भारत की माइक्रोबियल विविधता को सूचीबद्ध करने में एक महत्वपूर्ण वृद्धि का संकेत देते हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक जैव विविधता के नुकसान की पृष्ठभूमि में यह अध्ययन विशेष महत्व रखता है।

यह शोध, युवा-वैज्ञानिकों की सहयोगात्मक भावना का भी प्रमाण है। अध्ययन में शामिल 13 शोधकर्ताओं में से सात इंटर्नशिप के छात्र हैं और उनकी यह उल्लेखनीय भागीदारी, युवा वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन और व्यावहारिक प्रशिक्षण के महत्व को रेखांकित करती है। डॉ. सिंह की लैब में सीनियर रिसर्च फेलो और इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता सागरिका पाल ने छात्रों के समर्पण और कड़ी मेहनत की सराहना करते हुए कहा, “यह खोज हमारी टीम के सामूहिक प्रयास और अथक जिज्ञासा से ही संभव हो सकी। युवा शोधकर्ताओं को शामिल करने से अध्ययन नए दृष्टिकोण और ऊर्जा से समृद्ध हुआ।”
यह शोध जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक्सान के परिपेक्ष्य में जैव विविधता को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। इन नौ नवीन साइनोबैक्टीरियल प्रजातियों की खोज न केवल भारत की प्राकृतिक संपदा की बढ़ती सूची को जोड़ती है, बल्कि जैव विविधता अनुसंधान और संरक्षण में निवेश बढ़ाने के प्रयासों को भी मजबूती देती है।

इस शोधकार्य को एसईआरबी (SERB) और बीएचयू से अनुदान द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी। इस शोधकार्य को Phycology के प्रमुख जर्नल Algal Research में प्रकाशित किया गया है

 

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