“गांव के थाती’ समीक्षा- डॉ सुनील कुमार पाठक

‘गाँव के थाती’-
राम बहादुर राय जी के संस्मरण के किताब बतावल गइल बा।संस्मरण-लेखन के काम बहुत कठिन होला।संस्मरण- लेखक आ आत्मकथा के लेखक के सामने अपना लेखन में सच्चाई, साफगोई, ईमानदारी,तटस्थता के अपनावे के साथे -साथे ,अइसन कथा-प्रसंगन के चयन करे के भी चुनौती होला जवन दोसरो खातिर आ साँच पूछल जाव त पूरा समाजो खातिर ओतने उपयोगी होखे जेतना ऊ लेखक खातिर महत्वपूर्ण रहल बा।एह चयन के चुनौतियन के जवन लेखक हौसला,हुलास आ पूरा गंभीरता से स्वीकार करिके अपना लेखन में कमाल कर जाला,ओकर ओतने तारीफ होला।संस्मरण वास्तविकता पर आधारित होला- एही से ओमें जीवन के सच्चाई रहेले।संघर्ष आ संकल्प रहेला।उल्लास आ उद्वेलन- रहेला।संस्मरण सुनि -पढ़ि के आदमी का केहू दोसरा के जीवन से सबक मिलेला,प्रेरणा मिलेला आ अपना जीवन के ओकरे अनुसार सँवारे-सँभारे के सहूर जागेला।पहिले संस्मरण-लेखक कवनों महान व्यक्तित्व होत रहलें,बाकिर अब ई कवनों शर्त नइखे रह गइल। साहित्य में आ समाज में जब से ‘लघु मानवो'(आम मनई) के प्रतिष्ठा आ महत्व मिले लागल,ओकरो संवेदना,अनुभूति आ अभिव्यक्ति के तरजीह दिआये लागल, तब से साहित्यो देश- समाज के जीवंत दस्तावेज बनि के सामने आवे लागल बा। ‘सबाल्टर्न धारा’ के इतिहास-लेखनो के क्रम में अब अइसनका साहित्य के खास महत्व हो गइल बा।
राम बहादुर राय जी सामान्य जीवन स्तर वाला एगो संवेदनशील इंसान बाड़ें।उनकर जीवन महान आदिमी के जीवन नइखे रहल।बाकिर समाज के हर तबका के आदमी के साथे रह के ऊ जवन संस्कार आ अनुभव अरजले बाड़ें,जीवन के तीत-मीठ अनुभूति बिटोरले बाड़ें,ऊ उनकरे खातिर ना,बलुक सगरे भोजपुरिहा मानव-समाज खातिर बहुत उपयोगी हो गइल बा।ऊ जवन -‘गाँव के थाती’ लेके उतरल बाड़ें अपना पाठकन के सोझा,ऊ संवेदना,समझदारी,सदाशयता,से तs भरल-पूरल बड़ले बा , बहुत रोचको हो गइल बा।सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ जी एह किताब के बारे में लिखले बानीं कि –
“एह कथेतर गद्य पुस्तक में खेती-किसानी ,हल-बैल,अलोपित होत अनाज आदि के चर्चा में ठेठ भोजपुरी शब्दन के खूब प्रयोग भइल बा ,जवना के बारे में गाँव से जाके शहर में बसल नयकी पीढ़ी के पता ना होई। ”
-स्पष्ट बा एह कृति में गाँव बा,गाँव के परम्परा ,संस्कृति ,रीति-रिवाज,पर्व-त्यौहार, राग-रंग,हँसी-खुशी,मेहनत-मजूरी,संघर्ष-पीड़ा,विकलता-
बेबसी सब तरे के बात समाहित बा।साँच कहल जाव तs जीवन के उछाह आ उमंगे थाती ना होले,थाती ऊ संघर्ष आ वेदनो होले जवना से उबरे के कोसिस में मनुष्य आपन संकल्प आ वीरता के इतिहास रच देला।एह किताब के लेखक के साधारणते ओकरा संस्मरण के अइसन विशिष्ट आ असाधारण बना देत बिया कि ऊ हर वर्ग के पाठक खातिर उपयोगी आ ज्ञानवर्द्धक हो गइल बा।रामबहादुर जी के ‘गाँव के थाती’ ओह हर भारतीय के जीवन-थाती बिया, जे संघर्षे के आपन पराक्रम बना लेला,पुरुषार्थ बना लेला।गाँव एह किताब में सबहर रूप में उतरल बा।ऊ गाँव जवन शहर से सटियो के आपन वजूद बरकरार रखे में आजो कामयाब रहल बा।आज गाँव में अगर शहर घुसिआ आइल बा त गाँवो नगरन पर आपन छाप छोड़े में कवनों कोर-कसर नइखे उठा रखले।गाँव आ शहर के बीच एह आवाजाही के भावना आ बुद्धि के मेलो के रूप में देखल जा सकत बा।एह किताबो के सिरिजना में दिल आ दिमाग दूनू के सहारा लिहल गइल बा।इहे कारण बा कि एह में जेतना पारम्परिक मूल्यन के प्रति लगाव दिखत बा ओतने आधुनिकतो के प्रति वैचारिक रूझान नजर आवत बा।
ब्रजभूषण मिश्र जी अपना ‘भूमिका‘ में लेखक के भाषा-शैली पर सवाल उठावत उन्हका के छोट-छोट वाक्य लिखे के सुझाव देले बानीं ताकि कथ्य में अझुरहट ना रह सके।ई सुझाव से राय जी केतना ले प्रेरित होखिहें, ई उनका पर निर्भर बा, बाकिर हम एतने कहब कि हर लेखक का आपन लेखन-शैली खुद विकसित करे के चाहीं ताकि ऊहे ओकर आपन पहचान बनि सके।हमरा पूरा भरोसा बा राम बहादुर जी अपना भाषा -शैली आ कथ्य- विचारन के ताजगी से निश्चित रूप से आगे चलि के आपन एगो खास पाठक-वर्ग तैयार कर लीहें।कवनों लेखक आ ओकरा पाठक के बीच जब सीधा संवाद-सेतु तैयार हो जाला, त ओकरा केहू दोसरा से ‘इंडोर्समेंट’ के जरूरते ना रह जाला हमरा खुशी बा कि नया साल के पहिलके दिन राम बहादुर जी पर हम कुछ लिख सकनीं।
बहुत-बहुत बधाई भाई!
पटना, मोबाइल- 7261890519.