धर्मवाराणसी

हज़रत अली की जयंती पर निकला अमन का जुलूस

सेमिनार में सर्वधर्म समभाव पर वक्ताओं ने डाली रौशनी

सरफराज अहमद

वाराणसी। 13 रजब 1446 हिजरी मंगलवार को देश और दुनिया के साथ ही अपने शहर बनारस में भी नबी के दामाद, मुश्किलकुशा हज़रत अली की 1469 वी जयंती पूरी अकीदत और एहतराम के साथ मनाई गई। इस मौके पर शहर में जश्न का माहौल था। सुबह मैदागिन स्थित टाउन हॉल मैदान से हजरत अली समिति द्वारा आलीशान जुलूस उठाया गया। जुलूस जैसे ही मैदागिन चौराहे पर पहुंचा, दोषीपूरा से निकला एक अन्य जुलूस भी इस जुलूस में आकर शामिल हो गया। जुलूस में हजारों की तादाद में लोग मुबारक हो मुबारक हो अली वालो मुबारक हो…के नारे लगा रहे थे और सभी ने अपने हाथ में खुशी का प्रतीक लाल झंडा ले रखा था जिस पर अली लिखा हुआ था। रास्ते भर जुलूस नारे हैदरी या अली की सदाएं लगता हुआ एवं मौला अली की शान में कसीदा पढ़ता हुआ मैदागिन से नीची बाग स्थित गुरुद्वारा पहुंचा तो सिख समाज ने जुलूस का स्वागत किया एवं ओलमा कलाम को माला पहनकर उनका इस्तकबाल किया। चौक पर जब यह जुलूस पहुंचा तो सैय्यद फरमान हैदर ने तकरीर करते हुए कहा कि यह काशी नगरी है यहां का दिया हुआ पैग़ाम सारी दुनिया में पहुंचता है। मौला अली का यह पैगाम था सबके साथ न्याय होना चाहिए और सबको उसका हक मिलना चाहिए और मौला अली के यह पैगाम देने के लिए हम सब यह जुलूस लेकर निकले हैं। जब यह जुलूस दालमंडी पहुंचा तो लोगों ने इस जुलूस का स्वागत किया। जुलूस नई सड़क चौराहे पर पहुंचा तो वहां मौलाना फिरोज लखनऊवी ने मौला अली की शान में संक्षिप्त तकरीर की जुलूस अपनी रिवायत के मुताबिक काली महल, पीतरकुंडा, लल्लापुरा होता हुआ दरगाह फातमान पहुंचा।
इस दौरान भाई धर्मवीर सिंह वरिष्ठ ग्रंथी गुरुद्वारा नीचीबाग, फादर फिलिप्स डेनिस (डायरेक्टर मैत्री भवन) ने शिरकत करते हुए गंगा जमुना तहजीब की मिसाल पेश की। इस अवसर पर बड़ी तादाद में ओलमा काराम मौजूद थे। इस जुलूस की अगुवाई मौलाना शमीमुल हसन साहब के साथ बहुत सारे ओलमा कराम कर रहे थे। रास्ते भर कई शायरों ने जुलूस में अपने कलाम के जरिए मौला अली कि शान में कसीदे पढ़े।
इस अवसर पर सेमिनार में सर्वधर्म समभाव पर वक्ताओं ने जोर दिया। सेमिनार में बाबुल हवाएज अवार्ड दुर्र-ए-नजफ़ अवार्ड और विलायते अली अवार्ड जिसमें हाजी इरशाद मदनपुर, जिन्होंने हाथों के जरिए कुरान लिखी और अंजुमन मुहाफिज अज़ा विलायत अली अवार्ड और तीन बच्चियों को बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के लिए इनाम से नवाजा गया। जुलूस का संचालन मौलाना नदीम असगर और धन्यवाद ज्ञापन डॉ शफीक हैदर ने किया।
कमेटी के सदस्य में प्रोफेसर जहीर हैदर, अब्बास मुर्तजा शमसी, शफ़क़ रिजवी, सैयद फिरोज हुसैन, अमीन रिजवी, वसीम रिजवी, दोषीपुरा से मौलाना जायर हुसैन, मौलाना इकबाल हैदर, मौलाना गुलजार आदि मौजूद थे। श्री हैदर ने बताया कि 13 रजब को 1469 साल पहले हजरत अली काबे में पैदा हुए उनकी मां का नाम विनते असद था और उनके पिता का नाम अबू तालिब था मौला अली ने जिंदगी भर इंसाफ के लिए काम किया।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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