धर्मवाराणसी

भगवान श्री जगन्नाथ के वार्षिक यात्रा को लेकर काशी के विद्वात् परिषद की बैठक संपन्न

वाराणसी । काशी विद्वत् परिषद् के पदाधिकारियों की बैठक महामंत्री के आवास में सम्पन्न हुई। श्री जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में बलभद्र, सुभद्रा तथा सुदर्शन के साथ श्री जगन्नाथ के चतुर्धा विग्रह की वार्षिक यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आयोजित की जाती है। रथयात्रा का यह पर्व जगन्नाथ पुरी के अनुरूप इसी तिथि पर सम्पूर्ण भारतवर्ष तथा विश्व के अनेक स्थलों में भक्तजनों द्वारा आयोजित किया जाता है। इसी तिथि पर रथयात्रा पर्व का आयोजन शास्त्रीय लौकिक तथा पारम्परिक दृष्टि से सर्वमान्य है। काशी विद्वत् परिषद् के सम्मुख श्रुतिगोचर हुआ कि विश्व के किसी भाग में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि के अतिरिक्त किसी अन्य दिवस पर सुविधानुसार उक्त रथयात्रा पर्व के आयोजन को किये जाने का विचार आया है। इस विषय में माननीय गजपति, महाराजा जगन्नाथपुरी श्री दिव्यसिंहदेव  के निर्देश पर उनके प्रतिनिधि जगन्नाथ पुरी से आए डॉ.श्री विजयरामानुज के संयोजकत्व में उक्त विपरीत विचार के अनौचित्य के सन्दर्भ में श्री काशीविद्वत्परिषद् की यह विशिष्ट बैठक आहूत हुई। सभी पक्षों पर विचार विमर्श किया गया।

  1. स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड के 29 वें अध्याय के 33 तथा 34 वें श्लोक
    आषाढ़स्य सिते पक्षे द्वितीया पुष्य संयुता।
    तस्यां रथे समारोप्य रामं मां भद्रया सह ।। 29/33
    महोत्सवप्रवृत्यर्थं प्रीणयित्वा द्विजान् बहून्।
    गुण्डिचामण्डपं नाम यत्राहमजनं पुरा।। 29/34
    के अनुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथयात्रा अनुष्ठातव्य है। (स्कन्द पुराण चौ.सं. सिरीज आफिस ,424-425पृ., संस्करण द्वितीय वि. सं. 2076, सन् 2020)
  2. निर्णयसिन्धु के द्वितीय परिच्छेद में आषाढ़द्वितीयायां रथोत्सवः का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। (निर्णय सिन्धुः, श्री कमलाकरभट्टः, सं. नारयम राम आचार्य, चतुर्थ संस्करम, निर्णयसागर, शकाब्दः 1862, सनाब्दः1940, पष्ट-79
  3. श्री मद्भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण नें शास्त्र प्रमाण को सर्वोपरि माना है-
    तस्माच्छात्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
    ज्ञात्वाशास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।16/24
    यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
    न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16/25
    इसके अनुसार शास्त्रविरुद्ध तिथि पर रथयात्रा का आयोजन नहीं किया जा सकता। यदि किया जाता है तो इष्टहानि तथा अनिष्ट की उत्पत्ति होगी।
    काशीविद्वत्परिषद् के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी नें बताया कि कुछ देशों के भक्तों द्वारा महाप्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा की तिथि के आयोजन को लेकर अक्टूबर या दिसम्बर मास में आयोजित करनें की चेष्टा की जा रही है और इस सन्दर्भ में जगन्नाथ पुरी के राजा श्री दिव्यसिंहदेव जो कि जगन्नाथमन्दिर परिचारना कमेटी के अध्यक्ष भी हैं  जब ज्ञात हुआ तो उन्होनें इसका विरोध किया तथा काशी विद्वत् परिषद् के माध्यम से एक शास्त्रीय निर्णय का आग्रह भी किया। इसलिए आज काशी विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष पद्मभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी की अध्यक्षता में यह निर्णय करती है।
    जिसमें प्रमुखरूप से प्रो. गोपबन्धु मिश्र, प्रो. कमलेश झा, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. हरीश्वर दीक्षित, प्रो. पतञ्जलि मिश्र, प्रो. रमाकान्त पाण्डेय, प्रो. शङ्कर कुमार मिश्र, प्रो. विनय कुमार पाण्डेय, प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, डा. प्रियव्रत मिश्र,प्रो. शैलेश कुमार तिवारी, जगन्नाथ पुरी महाराज के प्रतिनिधि डा. विजयरामानुज सहित अनेक गणमान्य विद्वानों की उपस्थिति में यह निर्णय लिए गये।
  4. प्रसिद्ध स्वरूप आगम प्रमाण के बल से रथयात्रा को पूर्व निर्धारित परम्परानुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि पर ही आयोजित किया जाय।
    इस विमर्श के अनन्तर काशीविद्वत्परिषद् का सर्वसम्मति से निर्णय है कि देश, काल, पात्र निर्विशेष में श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि पर ही आयोजित की जाय। इसका उल्लंघन अशास्त्रीय लोकविरुद्ध तथा परम्परा के प्रतिकूल है एवं अनावस्था दोष भी उत्पन्न होगा तथा राज्य व राष्ट्र में उपप्लव, राष्ट्र की अवन्नति तथा दुर्भिक्षादि उत्पन्न होते हैं परम्पराओं के उल्लंघन से, इसलिए परम्परा के प्रतिकूल शास्त्र विरुद्ध कार्य कदापि स्वीकार्य नहीं है।

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