पवित्रम् प्रमाणीकृत वस्तुओं और सेवाओं को ही स्वीकार करें हिंदू: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद

संजय पांडेय
महाकुंभ नगर । प्रमाणीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे यह निश्चय होता है कि उत्पाद या सेवा मानकों के अनुसार है या नहीं? इससे गुणवत्ता का निर्धारण होता है, जिससे उत्पाद या सेवा के प्रति उपभोक्ता का विश्वास बढ़ता है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने हिन्दू आस्पद / पद प्रमाणन्। विषय पर व्यक्त करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि एक हिन्दू जब बाजार से कुछ उपभोग्य वस्तु खरीदने जाता है या किसी व्यक्ति अथवा संस्था की सेवा स्वीकार करने चलता है तब उसके सामने वस्तु अथवा सेवा की गुणवत्ता आदि के साथ-साथ उसके धर्म की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। कहीं उसके द्वारा खरीदी गई वस्तु से या ली जा रही सेवा उसकी धार्मिक पवित्रता तो बाधित नहीं हो रही; यह चिन्ता उसे न सताए इसके लिए हिन्दू प्रमाणीकरण संस्था की परम आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। जो उत्पादन उद्योगों एवं सेवा क्षेत्र में पवित्रता बनाए रखे। सभी उद्योग विशेषकर खाद्य उद्योग, कास्मेटिक, फार्मास्यूटिकल्स, स्वास्थ्य उत्पादों के क्षेत्र में पुष्टि करना कि वहाँ सनातन हिन्दू धर्म मूल्यों के विरुद्ध कोई प्रदूषण और मिलावट न हो।
इसी प्रकार सेवा क्षेत्र में विशेषकर पौरोहित्य व कृषि, होटल, ढाबा आदि में प्रमाणीकरण करना कि वहाँ खाने-पीने का सामान सनातन मूल्यों के अनुसार बनाया और परोसा जाए। तिरुपति के प्रसाद में भी यदि यह प्रमाणन हमने अपनाया होता तो जो हुआ वह न होता।
आगे कहा कि परमधर्मसंसद् १००८ विषय की गम्भीरता को देखते हुए प्रमाणीकरण के लिए ‘पवित्रम्’ शब्द का निर्धारण करते हुए एक ‘हिन्दू प्रमाणीकरण परिषद्’ का गठन करती है जो हिन्दुओं की उपभोग्य वस्तुओं और सेवाओं का प्रमाणीकरण करना आरम्भ करती है। प्रमाणन सभी उपभोग्य वस्तुओं का इस अर्थ में प्रोत्साहन करेगा कि इसके निर्माण में कोई भी ऐसा उपादान, विधि या प्रक्रिया सम्मिलित नहीं है जिससे हिन्दुओं पवित्रता बाधित होती हो।
हिन्दुओं से अनुरोध है कि ‘पवित्रम्’ प्रमाणीकृत वस्तुओं और सेवाओं को ही स्वीकार करने का प्रयास आरम्भ करें। आज विषय विशेषज्ञ के रूप में सक्षम सिंह योगी जी ने अपना उद्बोधन व्यक्त किया।
इसी क्रम में कृष्ण कन्हैया पदरेशु जी, जयपाल सनातनी जी, रजनीश गुप्ता जी, संतोष तिवारी जी, अनुसुईया प्रसाद उनियाल जी, आनन्द पाण्डेय जी, डा. रजनीश गुप्ता जी, दंगल सिंह गुर्जर जी, राहुल सिंह जी, सर्वभूतहृदयानंद जी, संजय जैन जी, संजय अठपा जी, गिरधर स्वामी जी, आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए
प्रकर धर्माधीश के रूप में श्री देवेंद्र पांडेय जी ने संसद का संचालन किया। सदन का शुभारंभ जायोद्घोष से हुआ। अंत में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उदघोष कर पारित हुआ।