धर्म प्रयागराज

अपनी पहचान दिनचर्या और संस्कार को स्पष्ट करें हिंदू, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद:

संजय पांडेय
महाकुंभ नगर। व्यक्ति वस्तु अथवा विचारों की विशिष्टता ही हमारी पहचान है। एक व्यक्ति के रूप में हमारा नाम हमारा रूप हमारी रुचियाँ, हमारे आचरण, हमारे मूल्य और हमारे अनुभव ही हमारी पहचान हैं। हमारी पहचान हमें या हमारे समूह को अद्वितीय ही नहीं बनातीं, अपितु हमें स्वस्थ-प्रसन्न तथा निर्भ्रम आचरण करने में सहायता करती हैं और हमें स्वयं को समझने और विश्व के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सहयोग भी करती है। इसके विपरीत पहचान का सङ्कट हमें वैयक्तिक, सामाजिक और सांस्कृतिक-धार्मिक दबाव अथवा सङ्घर्ष में डाल सकता है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने आज हिन्दू पहचान / दिनचर्या / संस्कार विषय पर व्यक्त करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि परमधर्मसंसद् १००८ समस्त हिन्दुओं से उनकी पहचान को सुस्पष्ट बनाये रखने का धर्मादेश देती है। कम से कम अपनी पहचान बनाये रखने के लिए तिलक, चोटी, कण्ठी, जनेऊ और धोती-उत्तरीय जैसे धर्मचिह्न धारण करना आवश्यक है। इसी तरह अपनी दिनचर्या में सूर्योदय से पहले उठकर यथाविधि स्नान/सन्ध्या/पूजादि करना और दिन में समय से पवित्र भोजन कर रात्रि में जल्दी सोने के लिए जाना उचित है। इसे ही युक्ताहार विहार कहा है। हिन्दुओं को अपने कम से कम १६ संस्कारों में से यथासंभव को अपनाना उचित होगा।

आगे कहा कि पहली पहचान हमारी वेशभूषा तथा अलङ्कारों से होती है। कोई हमें देखे तो उसे पक्का हो जाए कि हम हिन्दू हैं। और बाद में हमें अपने आचरणों/ व्यवहारों को भी वैसा ही रखना चाहिए, जिससे हमारी पहली पहचान कभी अपमानित न हो और बदले न। विचारों के स्तर पर हमारी पहचान ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ , ‘अहिंसा परमो धर्म:’  तथा आत्मन: प्रतिकूलानि न परेषां समाचरेत् है जिसे हमे बनाए रखना है।
आज विषय स्थापना हर्ष मिश्रा जी ने किया।
चर्चा में विशेष उद्बोधन में प्रवीण भाई तोगड़िया जी, चिलकुल बालाजी स्वामी रंगराजन जी महाराज जी, स्वामी दिलीप दास जी महाराज जी, धर्मदास जी महाराज, जनमेजय शरण जी महाराज, ने अपने विचार व्यक्त किए। इसी क्रम में सुनील कुमार शुक्ला जी, अनुसिया प्रसाद उनियाल जी, दंगल सिंह गुर्जर जी, डेजी रैना जी, जय प्रकाश पांडे जी, संतोष कुमार सिंह जी, आदि  लोगो ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
प्रकर धर्माधीश के रूप में श्री देवेंद्र पांडेय जी ने संसद का संचालन किया। सदन का शुभारंभ जायोद्घोष से हुआ। अंत में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उदघोष कर पारित हुआ।

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