धर्म

मुस्लिम घरों में इमाम जाफर सादिक के कूंडे की हुई फातेहा

सरफराज अहमद

वाराणसी। Desh Duniya की तरह ही वाराणसी के मुस्लिम इलाकों में इमाम जाफर के कुंडे की फातेहा कराने और फातेहा का तबर्रुक चखने लोग उमड़ रहे हैं।इमाम हज़रत जाफर सादिक की फातिहा सुबह फज्र की नमाज के बाद से ही शुरू हो गई। जिसके बाद अकीदतमंद घरों में फातिहा का तबर्रुक चखने के लिए पहुंचने लगे। इसे लेकर बच्चों में ज्यादा ही उत्साह देखने को मिला।

शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर ने बताया कि इमाम जाफर सादिक ने रोजी-रोटी में बरकत के लिए इस नजर (फातिहा) के बारे में कौम से कहा था। तभी से यह फातिहा करायी जाती है। दरअसल इस्लामिक कैलेण्डर के रजब माह की 22 तारीख को 1444 हिजरी से इसकी शुरुआत हुई थी।

बनारस के मुस्लिम बहुल इलाकों मदनपुरा, रेवड़ी तालाब, नई सड़क, दाल मंडी, भेलूपुर, गौरीगंज, शिवाला, रामनगर, अर्दली बाजार, प्रहलाद घाट, नक्की घाट, लल्लापुरा, दरगाह फातमान, काली महल, रामनगर, लाट सरैया में सुबह से शाम तक कुंडे का आयोजन समाचार लिखे जाने तक चल रहा था।

इस संबंध में हाजी फरमान हैदर ने बताया कि कूंडे का पर्व हर वर्ष 22 रजब को छठवें इमाम हजरत इमाम जाफर सादिक की नजर व फातिहा के साथ मनाया जाता है। इसमें घरों में लज़ीज़ पकवान, खीर-पूड़ी, मीठी टिकिया, जलेबी और कई तरीके के पकवान बनाए जाते हैं। इस फातिहा में रोजी-रोटी में बरकत व लिए रब की रहमत व देश और दुनिया में अमन के लिए इस फातिहा के दौरान दुआएं मांगी जाती है।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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