उत्तर प्रदेशधर्मवाराणसी

वक्त के सितम का शिकार ऐतिहासिक सेंट मैरीज इंग्लिश चर्च

महज यह चर्च नहीं इतिहास का एक दस्तावेज

सरफराज अहमद

वाराणसी। आज पूरी दुनिया यीशु मसीह के जन्म की खुशी तो मना रहा है। उनके जश्न में मसीही डूबा हुआ मगर उसे कैंटोंमेंट वाराणसी के सेंट मेरीज इंग्लिश चर्च की अब याद नहीं आती वह उसे भूल गया है जो कभी बनारस ही नहीं देश दुनिया की शान हुआ करता थी पर अब खंडहर जैसी होकर रह गई है।

वाराणसी छावनी क्षेत्र में सड़क के एक ओर होटलों की कतार है, तो ठीक दूसरी छोर पर वीरान परिसर में यह चर्च अपने हाल पर आंसू बहा रहा है। इस चर्च ने अपने भीतर पूरा एक दौर सहेज रखा है। झाड़ झंखाड़ व झुरमुट में तब्दील 12 एकड़ का चर्च, जिसे कभी धर्म के भेद से परे हिन्दुस्तानियों ने समभाव से सींचा। बीचों-बीच खड़ी ईंट की दीवारें जो देखने में महज गिरजाघर नजर आती है। लेकिन अगर इसकी तह में जाएं तो यह खूबसूरत इतिहास है जिसका वर्तमान आंसु बहा रहा है।

उत्तर भारत में कोलकत्ता के बाद सबसे पूराने इस गिरजाघर की स्थापना सन 1810 में फादर जॉर्ज वीट्ली द्वारा की गयी थी। इसके सी साइमन पहले पादरी थे। प्राचीन बनारस के परिकल्पनाकार जेम्स प्रिंसेप ने इस गिरजाघर को सजाने के लिए अपने सपनों के रंग भरे। बात 1917 की है, जब प्रिंसेप बनारस आए और आराधना के लिए जगह तलाश कर रहे थे। लोगों ने उन्हें इस गिरजाघर का रास्ता और महत्ता बताई। सृजनधर्मी प्रिंसेप के मन को यह स्थान इतना रास आया कि गिरजाघर के ऊपर एक भव्य मीनार बनवाई और साज संवार भी कराई। फरवरी 1960 में काशी भ्रमण पर आई एलिजाबेथ और प्रिंस फिलिप ने इस गिरजाघर में आराधना की और इसकी भव्यता देख कर काफी प्रशंसा की। चर्च परिसर में रह रहे पाल जिनिया के पिता जान जिनिया का परिवार ही शुरू से इसकी देखरेख करता है। उनके परिवार वालों की मानें तो काशी नरेश व स्काटलैंड के राजकुमार प्रिंस जॉन डियूक ने भी  इस चर्च में प्रार्थना कीं थीं। एनी बेसेंट भी काशी प्रवास के दौरान यहां प्रार्थना के लिए आया करती थीं।

ईश्वर के निरंकार रूप की प्रार्थना करने वाले प्रोटेस्टेंट ईसाईयों का राष्ट्र प्रेम ही था कि उन्हें धर्म स्थल में भी अंग्रेजी सत्ता स्वीकार नहीं थी। उनके प्रयासों से आज यह गिरजाघर चर्च ऑफ नार्थ इंडिया (सीएनआई) के अधीन है। इस गिरजाघर की छत कुछ वर्ष पहले पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी। दीवारों के प्लास्टर उखड़ गए, कई स्थानों पर ईंटें दिख रही है। दीवारों पर उभरी कलाकृतियां सुरक्षित तो थीं लेकिन ईंट और बालू से ढक जाने के बाद उनके सौंदर्य का कोई मतलब ही नही रह गया था। हेरिटेज में शामिल इस ऐतिहासिक चर्च की प्राचीनता को बचाने के लिए न तो मसीही समुदाय आगे आ रहा है और न ही चर्च से कुछ दूर पर आलीशान बंगले में रहने वाले कैथोलिक सूबे के सबसे बड़े धर्म गुरु, जो अपने को समस्त ईसाई धर्म ही नहीं बनारस की गंगा जमुनी तहजीब का अगुवा भी कहते। मैत्री भवन से लेकर कई सौहार्दपूर्ण संस्थाएं चलाने का उनका दावा है। वहीं प्रोटेस्टेंट समुदाय आपसी खींचतान में ही सदैव फंसा रहा है। कभी पादरियों के वेतन, तो कभी चर्च पर कब्ज़ा आदि से ही वो बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हालांकि तेलियाबाग सीएनआई चर्च के पादरी आदित्य कुमार विश्वास दिलाते हैं कि इस संबंध में वो इलाहाबाद और दिल्ली में बैठे धर्माध्यक्षों से बात करेंगे। वर्तमान में विशेष अवसरों पर लाल गिरजाघर के पादरी चर्च भवन के बाहर प्रेयर कराते हैं। चर्च में चार कमरे हैं, पोर्टिको, हॉल और विशाल बागीचा है। इसे चर्च ऑफ इंग्लैण्ड, गैरिसन चर्च और आर्मी चर्च के नाम से भी इस चर्च को पुकारा जाता हैं।

aman

मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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