एजुकेशनवाराणसी

भगवान बिरसा मुंडा समाज के शिक्षा के प्रचार प्रसार पर बहुत बल दिया: कुलसचिव

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन में जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती समारोह धूमधाम से मनाया गया

वाराणसी । सोमवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतन्त्रता भवन सभागार में जनजातीय गौरव दिवस, स्वतन्त्रता संग्राम के जनजातीय महानायक “भगवान बिरसा मुंडा ” के जयंती समारोह का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी एवं जनजातीय महानायक भगवान बिरसा मुंडा  के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। तत्पश्चात संगीत एवं मंच कला संकाय की छात्राओं शमायिता पांजा, रोमा गुप्ता एवं ईशा जोशी द्वारा कुलगीत का गायन प्रस्तुतिकरन किया गया।
अतिथियों का स्वागत प्रो. निर्मला होरो द्वारा किया गया,
प्रो. रविन्द्र नाथ खरवार, विज्ञान संस्थान, जो मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज में एक आमूलचुल व जन आंदोलन को आगे बढ़ाया। बहुत ही कम उम्र में आदिवासी समाज में पनपे कुरीतियों पर भी अपनी सक्रियता से भूमिका निभाया और उन्होने शिक्षा और संगठन तथा नशा मुक्ति पर काफी ज़ोर दिया। उन्होने अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों का पूरी तरह से विरोध किया। उन्होने उलगुलन की आवाज दी और अंग्रेजों के लिए नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया। परिणामस्वरूप 1908 में अंग्रेज़ आदिवासियो के जंगल, जमीन की रक्षा के लिए छोटा नागपुर कस्तकारी अधिनियम 1908 को लागू किया गया। इस दौरान सरकार के द्वारा जन जातियो के उत्थान के लिए चलाये जा रहे योजनाओं का विस्तार से जानकारी दिये। हमारे यहाँ अपना राज चलेगा और अंग्रेज़ो का राज समाप्त होगा। जल, जंगल, जमीन का नारा बिरसा काल से शुरू हुआ और आज भी चला आ रहा है।
प्रो. संजय कुमार, कुलगुरु, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने अध्यक्ष उदबोधन में कहा कि यह काफी गौरव का विषय है कि सरकार के द्वारा जनजाति गौरव दिवस मनाने का पहल किया गया जिससे जनजाति समाज को काफी गौरविन्त महसूस होना चाहिए। उन्होने कहा कि बिरसा मुंडा का योगदान आदिवासी समाज में उलगुलान लाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसे कभी भुलाया नही जा सकता है उन्होने कहा कि जब तक सूरज चाँद रहेगा धरती आबा बिरसा तेरा नाम रहेगा।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि  राजेश कुमार गौतम ने अपने उदबोधन में कहा कि आज समय आ गया है कि हमे अधिकारों को मांगने नही छीनने की आवश्यकता है। यही शिक्षा तो हमे धरती आबा बिरसा मुंडा प्रेरित करती है कि कोई आपको अपना अधिकार मांगने पर नही देगा उसे छीनकर प्राप्त करना है। युवाओं को अपने अधिकार के प्रति सचेत रहने कि आवश्यकता है और अपने अधिकार का भरपूर उपयोग करना है और अपने समाज को संगठित कर समाज का आयोगदान करना है और समाज को अधिक समृद करना है।
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के संगठन मंत्री (General Secretary) कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि  अतुल जोग ने अपने उदबोधन में कहा कि देश में लगभग 9% प्रतिशत की आबादी जो जनजाति के शृंखला में रखा गया है जो वर्षों से जनजाति के संस्कृति, समाज, प्रकृति, एवं प्रकृति धरोहर को बनाए रखा है। उन्होने कहा कि जालियावाला बाग को इतिहास में पढ़ते है लेकिन तिलका मांझी, सिद्धों कान्हु, बिरसा मुंडा को इतिहास में उतना महत्व नही दिया गया। ऐसे अनेकों ने कहा कि आदिवासियों को भारत के स्वतन्त्रता आंदोलनों में महत्वपूर्ण योगदान किया है। अंग्रेज़ो के ये समझ आया कि आदिवासियों को दमन किए बिना यहाँ अपना शासन और अधिपत्य को बरकरार नही रख जा सकता है तब अंग्रेज़ ने आदिवासियों को आपराधिक जनजाती अधिनियम बनाकर जन जातियों को अपराधी घोषित करने का कार्य किया इंही सभी चीजों का विरोध भगवान बिरसा मुंडा एवं अन्य जनजाति स्वतन्त्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ो को दमन करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है आज जनजातियों जीवन शैलियों को बिना अनिकृत किए सम्पूर्ण विकास कि कल्पना नही किया जा सकता है आज जन जातियों के जीवन शैली पर वृहत शोध की आवश्यकता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुये प्रो. अरुण कुमार सिंह, कुलसचिव, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा ने समाज के शिक्षा के प्रचार प्रसार पर बहुत बल दिया। जनजाति समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होने आदिवासियों के विकास के संविधान में प्रदत अधिकारों का भी उल्लेख किया प्रो. सिंह ने कहा कि आज के समय आदिवासियों के जीवन शैली को विकास के लिए अधिक से अधिक प्रयत्न करने की अवश्यकता है।
कार्यक्रम को डॉ संजय कुमार, संयुक्त कुलसचिव एवं संपर्क अधिकारी अनुसूचित जाति/ जनजाति प्रकोष्ठ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने कहा कि आज वक्त आ गया है कि हम सभी को मिलकर आदिवासी समाज को उनके अधिकारो को दिलाना होगा तथा उनके संस्कृति लोकाचार जीवन शैली को बचना होगा और विश्व में शांति और पर्यावरण को संरक्षित करना है।
उक्त कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न जनजातीय छात्र-छात्राओं द्वारा विभिन्न जनजातीय सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकनृत्य, गायन आदि का प्रस्तुतिकरण किया गया।
इस अवसर पर स्वतन्त्रता संग्राम के जननायकों की जीवनी का प्रदर्शन पोस्टर प्रदर्शनी लगाकर किया गया। जनजातीय कलाकृति एवं परिधानों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ श्रुति हंसदा, सहायक आचार्या, विज्ञान संस्थान ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ दिनेश कुमार, सहायक आचार्य, विज्ञान संस्थान ने किय।

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