धर्म

नमाजे तरावीह में हाफिज़े कुरान की हुई गुलपोशी

ईद का चांद देखने तक सुरे तरावीह पढ़ना जरूरी

सरफराज अहमद
वाराणसी। रमजान के पवित्र महीने में बनारस के सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज मुकम्मल होनी शुरू हो गई है। इस मौके पर पार्षद हाजी ओकास अंसारी ने बताया की बुनकर बिरादरना तंजीम बाइसी के सरदार हाजी हाफिज मोइनुद्दीन की सदारत में मोहल्ला नक्खीघाट स्थित मस्जिद बारादरी में पांच दिन की तरावीह की नमाज खत्म हुई। इस मस्जिद में तरावीह की नमाज हाफिज मोहम्मद आसिफ जैसे ही मुकम्मल की तमाम लोगों ने उनका जोरदार खैरमकदम किया। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में लोगों ने नमाज अदा की। सरदार हाफिज मोइनुद्दीन ने इमामे तरावीह को सिर पर साफ़ा बांध कर माला पहना कर उनका जोरदार इस्तेक़बाल किया।सरदार साहब ने कहा कि कुरान मुकम्मल हो गई है इसका ये मतलब नहीं है कि तरावीह अब नहीं पढ़ना है बल्कि सूरे तरावीह पूरे महीने भर पढ़ना है जब तक ईद का चांद न हो जाए। इस मौके पर मौजूद सरदार दरोगा, पार्षद पति हाजी ओकास अंसारी, बाबूलाल किंग, हाजी सुहैल, पार्षद डा. इम्तियाजुद्दीन, बाबू महतो, शमीम अंसारी, हाजी गुलाब, हाजी हाफिज नसीर, मोहम्मद परवेज,  हाजी यासीन मायिको, हाफिज अनवर, हाफिज अल्ताफ, हाजी अलीम, मास्टर मुमताज, हाजी अजमल, जैनुलआब्दीन, मोहम्मद महबूब सहित सैकड़ों की तादाद में लोग मौजूद थे।

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मैंने बतौर पत्रकार कैरियर कि शुरुआत अगस्त 1999 में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग से किया था। धर्मसंघ के इस पत्र से मुझे मज़बूत पहचान मिली। अक्टूबर 2007 से 2010 तक मैंने अमर उजाला और काम्पैक्ट में काम किया और छा गया। राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट लांच हुई तो मुझे बुलाया गया। अक्टूबर 2010 से मार्च 2019 तक मैं राष्ट्रीय सहारा वाराणसी यूनिट का हिस्सा था। आज जब दुनिया में बद्लाव शुरू हुआ, चीज़े डिज़िटल होने लगी तो मैंने भी डिज़िटल मीडिया में बतौर सम्पादक अपने कैरियर कि नई शुरूआत दिल इंडिया लाइव के साथ की। इस समय में हिंदुस्तान संदेश में एडिटर हूं। मेरा यह प्लेट्फार्म किसी सियासी दल, या किसी धार्मिक संगठन का प्रवक्ता बन कर न तो काम करता है और न ही किसी से आर्थिक मदद प्राप्त करता है।

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